रामकुमार टंडन की रिपोर्ट
कवर्धा - एक तरफ हम आजादी के बीते वर्षों विकास की गाथाएं गाए जा रहे है, वहीं दूसरी ओर मूल निवासियों को आज भी मूलभूत सुविधाएं नही मिल पा रही है, ऊपर से नौकर शाह और नेता झुठी रिपोर्ट के आधार पर विकास की कहानियां गढ़ते जा रहे हैं। पंडरिया ब्लाक के वनांचल क्षेत्र के ग्राम पंचायत तेलियापानी लेदरा इनमें से एक है। ग्राम तेलियापानी लेदरा अन्य आश्रित ग्रामों में एक ऐसा गांव है जहां आजादी के 75 साल बाद भी लोगों को बिजली, पानी और सड़क की सुविधा नहीं मिल पा रही है।
इन गांव ने सरकार के तमाम दावों की पोल खोल कर रख दी है, गांव के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं, और सुविधाओं के अभाव के बीच अपना जीवन जी रहे हैं यह गांव छत्तीसगढ़ एवम् मध्यप्रदेश के सरहद पर बसा है यहां के जिम्मेदार जनप्रतिनिधि जिनके पास पंचायती राज व्यवस्था में जो शक्ति दी गई है, सरपंच 20 किलोमीटर दूर कामठी में निवास करती है पूर्व में पति भी सरपंच रहा है और वहीं ग्राम पंचायत सचिव 45 किमी दूर पंडरिया में निवास कर दो दो पंचायत का प्रभार ले सचिव बना बैठा है।
वृद्धा पेंशन हो, जन्म प्रमाण, मृत्यु पत्र निराश्रित या छत्तीसगढ़ सरकार के महतारी वंदन योजना आदि छोटा छोटा सा काम हो या मूलभूत समस्याओं के लिए भी 20 से 50 किमी की दूरी नापना पड़ता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत विशेष पिछड़ी जनजाति के बैगा समुदाय के लोगों को राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र का दर्जा दिया गया है, और इन्हें संरक्षित करने की कई योजनाएं भी संचालित हैं।
प्रदेश के राज्यपाल को पांचवीं अनुसूची के उपबंध 275 (1) के अनुसार राज्य सरकार हर साल रिपोर्ट देनी है कि आदिवासियों के हित में क्या काम किए हैं। राज्यपाल की ओर से राष्ट्रपति को भेजी जाने वाली इसी रिपोर्ट के आधार पर छत्तीसगढ़ को हर साल आदिवासियों के विकास के लिए अलग अनुदान मिलता है।
ग्राम पंचायत तेलिया पानी के आश्रित ग्राम अजवाइनबाह, मराडबरा, सरहापथरा, तीन गड्ढा, पकरीपाणी इस गांव में रहने वाले बैगा समुदाय को शासन से मिलने वाली उन तमाम योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है,।जिसके लिए वह हकदार हैं और आज भी ये लोग गरीबी व बेबसी का जीवन जी रहे हैं। विकासखंड ब जिले में बैठे अधिकारी साप्ताहिक तथा महीने में पूरी रिपोर्टिंग कर जानकारी देने वाले नोडल अधिकारी अन्य सरकारी गैरसरकारी एजेंसियां लगता रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं जिसके आधार पर जनजातियों के विकास की कहानियां पढ़ी जा रही है।